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By means of vivid storytelling and meticulous exploration, Rahul Sankrityayan weaves with each other a tale of Indian history, mythology, and philosophy. The novel explores the themes of social transform, cultural continuity, plus the cyclical character of everyday living. This Hindi fiction book is celebrated for its literary richness, historic depth, plus the creator’s power to existing elaborate ideas within an accessible fashion.

सब को डरा कर वाह अपने को गली का सेट समझने लगा था। उसके झुंड में एक छोटा सा शेरू नाम का डॉगी भी था।

बहुत पहले की बात है, खासी जन समूह में कानन नाम की एक खूबसूरत लड़की थी। एक बार एक बाघ ने उसे पकड़ लिया और गुफा में ले गया। जब भूखे बाघ ने लड़की को देखा, तो उसने महसूस किया कि वह लड़की उसकी भूख को संतुष्ट करने के लिए बहुत छोटी है। इसलिए उसने उसे बड़े होने तक कुछ समय के लिए रखने का फैसला किया।

जब तक समाज में अमीरी और ग़रीबी यानी वैभव और वंचना की खाई रहेगी, 'कफ़न' किसी क्लासिक की तरह कालजयी रहेगी.

हेमंत सोरेन और के. कविता पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के निचली अदालतों के लिए क्या मायने हैं?

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किसी जगह पर पीपल का एक बहुत get more info बड़ा पेड़ था। वहां रहने वाले लोगों का यह मानना था की यह पीपल का पेड़ बहुत पवित्र है। कुछ समय बीता, वहां केराजा की एक बेटी हुई। बेटी का नाम रूपा रखा गया। रूपा को बाग़-बगीचे में खेलना बहुत अच्छा लगता था। जैसे ही रूपा की पढ़ाई पूरी होती, वह सीधे राज बगीचे में खेलने चली जाती।

मुकेश जब भी स्कूल जाता उसे रास्ते में कूड़ेदान से होकर गुजरना पड़ता था।

प्रकृति से मिली हुई चीज को सम्मान पूर्वक स्वीकार करना चाहिए वरना जान खतरे में पड़ सकती है।

यह कहानी हमें कभी भी चोरी न करने और हमेशा नेक रास्ते पर चलने की सीख देती है।

अगले दिन दूसरे भाई ने सावित्री को अपने सफ़ेद मैले कपडे धोने के लिए भेजा और जानबूझकर उसे साबुन नहीं दिया। तालाब पर पहुंच कर सावित्री रोने लगी। तभी वहां से एक सारस निकला और रोती हुई सावित्री को देख कर उसकी मदद के लिए रुक गया। सरस कपड़ों पर लोटने लगा जिस से कपडे दूध जैसे सफ़ेद हो गए। सावित्री ख़ुशी ख़ुशी कपडे ले कर घर चली गई।

भुवाली की इस छोटी-सी कॉटेज में लेटा,लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी-भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों के झटक-झटक जाती धुंध के निष्फल प्रयास देखता हूँ और फिर लेटे-लेटे अपने तन का पतझार देखता हूँ। सामने पहाड़ के रूखे हरियाले में कृष्णा सोबती

मम्मी ने उन दोस्तों को धन्यवाद किया और उन्हें ढेर सारे आम खिलाएं। वेद जब ठीक हुआ तो उसे दोस्त का महत्व समझ में आ गया था। अब वह उनके साथ खेलता और खूब आम खाता था।

यह लोक कथा उस समय की है जब जानवर बोलते और नाचते थे। एक बार एक सुस्त पंखों वाला मोर रहता था

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